Monday, 17 September 2012

LALKRUSHNA ADWANI SPEECH ON RELATION OF INDIA & PAKISTAN IN HINDI

भारत और पाकिस्तान के बीच मैत्री सम्बन्धों पर आडवाणीजी के विचार
 विभाजन (1947), तीन युध्द (1947-48, 1965, 1971), शिमला समझौता (1972), लाहौर घोषणा-पत्र (1999), कारगिल युध्द (1999), असफल आगरा शिखर र्वात्ता (2001), इस्लामाबाद संयुक्त वक्तव्य (2004), लगातार जारी सीमा पार आतंकवाद... क्या भारत और पाकिस्तान के बीच वैर-भाव को दूर कर स्थायी शांति और सद्भावपूर्ण सहयोग तथा अच्छे पड़ोसी जैसे संबंध स्थापित नहीं हो सकते? क्या हमारे आपसी संबंध अतीत की तरह कटु ही बने रहेंगे? क्या हम अपनी भावी पीढ़ी को बेहतर भविष्य नहीं दे सकते या फिर क्या यह हमारा कर्तव्य नहीं है? मैं समझता हूँ कि यह हमारा कर्तव्य बनता है और हमें ऐसा करना ही चाहिए।
इस स्थिति को बदलने की प्राथमिक जिम्मेदारी पाकिस्तान की बनती है। कारण यह है कि भारत ने अपनी पहचान को पाकिस्तान विरोधी रूप में नहीं ढाला है। और न ही भारत अपने उत्थान को पाकिस्तान के पतन में देखता है। दुर्भाग्य की बात है कि पाकिस्तान में बहुत से लोग अपने देश की पहचान और भविष्य को भारत से अलग, बल्कि उसके विरुध्द, करके देखते हैं। भारत-विरोधी दृष्टिकोण यह वहाँ की सैनिक और धार्मिक व्यवस्था में गहरे समाया हुआ है। साथ ही, पाकिस्तान में भारत की तथाकथित कमजोरियों के बारे में एक पूर्णतया गलत धारणा भी घर कर गई है, जिसके चलते कुछ पाकिस्तानी यह मान बैठे हैं कि भारत को बार-बार चोट पहुँचाकर और उसको लहूलुहान करके वे कश्मीर पर कब्जा कर सकते हैं; पर यह कभी नहीं होने वाला है।
इसके विपरीत, पाकिस्तान में सकारात्मक सोच रखनेवाले बुध्दिजीवी समझते हैं कि इस दु:साहस की कीमत पाकिस्तान को स्वयं चुकानी पड़ेगी। पाकिस्तान के अनेक नेता लंबे समय से यह रट लगाते हुए स्वयं को तसल्ली देते आ रहे हैं कि जम्मू व कश्मीर 'विभाजन का एक अधूरा एजेंडा' है और इसी के आधार पर वे राज्य के मामलों में पाकिस्तान के हस्तक्षेप को बराबर उचित ठहराते रहे हैं। आगरा में मुशर्रफ ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को स्वतंत्रता आंदोलन बताकर इसी भ्रम का प्रदर्शन किया था। इस संदर्भ में पाकिस्तान आज एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है। ऐसे में उसे ऐसा रास्ता चुनना चाहिए, जो उसके अपने और पूरे दक्षिण एशिया के व्यापक हित में हो।
मैं समझता हूँ कि भारत के साथ शांतिपूर्ण और मित्रतापूर्ण संबंधों के लिए पाकिस्तान के सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों की संख्या में पिछले कुछ दशकों में काफी वृध्दि हुई है। हम भारतीयों को अपनी पाकिस्तान-विरोधी पूर्वग्रहों कोजो प्रतिक्रिया के रूप में हमारे मन में उत्पन्न हुई हैंछोड़कर इस क्षेत्र में सक्रिय शक्तियों से मिलकर काम करना होगा। परंतु, जैसाकि मैंने पहले बताया, भारत-पाकिस्तान संबंधों में मौलिक रूपांतरण के लिए सबसे पहले आतंकवाद को खत्म करना होगा, जिसे एक ओर मजहबी कट्टरवाद द्वारा और दूसरी ओर राजकीय समर्थन-प्रोत्साहन द्वारा पोषण मिल रहा है। जब ऐसा हो जाएगा तो दोनों देशों के सामने जम्मू व कश्मीर सहित सभी आपसी मसलों के व्यवस्थित हल निकल आएँगे।

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