लोकसभा में लोकपाल विधेयक पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री का वक्तव्य
एक राष्ट्र के जीवन में कुछ क्षण बहुत ही विशेष होते हैं। यह ऐसा ही विशेष अवसर है। राष्ट्र बड़ी बेताबी से प्रतीक्षा कर रहा है कि लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 2011 पर बहस के अंत में मतदान द्वारा इस सदन का सामूहिक विवेक प्रतिबिम्बित होगा।
इस विधेयक के मुख्य प्रावधानों पर जनता में और राजनीतिक दलों द्वारा काफी बहस हुई है। मेरा यह सच्चा विश्वास है कि यह विधेयक जो इस समय सदन के सामने हैं, उस वचन पर खरा उतरता है जो इस सदन के सदस्यों ने इस देश के लोगों को 27 अगस्त 2011 को सदन की भावना के रूप में बहस के अंत में सामूहिक रूप से पेश किया था। कानून बनाने का कार्य बड़ा गंभीर मामला है और यह अंततः हम सब के द्वारा किया जाना चाहिए, जिन्हें यह संवैधानिक रूप से सौंपा गया है। अन्य लोग भी बहस कर सकते हैं और उनकी आवाज सुनी जाएगी, लेकिन, निर्णय हमें ही करना है। इसके साथ-साथ हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि भ्रष्टाचार और उसके परिणामों ने राजनीति को खराब किया है। हमने देखा है कि पिछले एक वर्ष में जनता का क्रोध किस प्रकार बढ़ा है। इसलिए आइए हम इस विधेयक का इसके प्रस्तावित रूप में समर्थन करें। इस विधेयक का प्रारूप तैयार करने में हमने बड़े पैमाने पर सलाह मशविरा किया है। राजनीतिक दलों के विचारों से हमारा ज्ञान वर्धन हुआ है और सभी प्रकार के सुझावों को ध्यान में रखा गया है।
मैं यह कहना चाहता हूं कि जब मेरी सरकार चुनी गयी थी, हम अपनी नीतियां जनता की भलाई के अनुरूप बनाना चाहते थे। हम पारदर्शी और खुले प्रशासन में विश्वास करते हैं और आम प्रशासन के प्रति हमारी सैद्धांतिक वचनबद्धता के कारण ही हम सन् 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम लाया। जनोन्मुखी नीतियों को और बढ़ावा देने के लिए हमने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 पारित किया। बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 वंचित और हाशिए पर खडे लोगों को सशक्त बनाने की हमारी इच्छा का सबूत है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निदान के लिए है। हमने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरणीय मिशन (जेएनएनयूआरएम) के जरिये अपने शहरों को नया रूप देने का प्रयास किया है। राजीव आवास योजना का उद्देश्य शहरों में गरीब और बेघर लोगों को आवास प्रदान करना है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक 2011 का प्रस्तुत किया जाना गरीब और कुपोषित लोगों को भुखमरी और प्रवंचना के परिणामों से सुरक्षित करने की दिशा में एक अन्य उपाय है। भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास विधेयक 2011 किसानों और रोजगार से वंचित लोगों के बीच समानता लाने के उद्देश्य से लाया गया है। हमने अधिक समतावादी और समावेशी भारत का निर्माण करने का प्रयास किया है जिसमें कम सुविधा प्राप्त लोगों तक विकास के लाभ पहुंचाना है। यह मेरी सरकार का मिशन है और यह आगे भी जारी रहेगा।
भ्रष्टाचार पर हमारी सरकार ने निर्णायक कदम उठाए हैं। पिछले एक साल में हम कई ऐतिहासिक कानूनों पर कार्य कर रहे हैं। नागरिकों को सामान एवं सेवाओं की समयबद्ध उपलब्धता का अधिकार तथा उनकी शिकायत निवारण से संबंधित विधेयक, 2011 सदन के समक्ष है। जनहित में प्रकटीकरण और प्रकटीकरण करने वाले व्यक्तियों को संरक्षण देने संबंधी विधेयक, 2010 और लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2011 को अभी आपकी मंज़ूरी मिलनी बाकी है। न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक, 2010 को स्थायी समिति द्वारा मंजूरी मिल चुकी है और इस पर सरकार द्वारा विचार किया जाना बाकी है। सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्धता संबंधी विधेयक, 2011 को पेश किया जा रहा है जो यह सुनिश्चित करेगा कि जन सेवाएं इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से लोगों तक पहुँचे। यह ऐतिहासिक और अभूतपूर्व विधेयक हैं। प्रशासनिक क्षेत्र में हमारी सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों के साथ निर्णय प्रक्रिया को सरल बनाना चाहती है। हम खरीद के विषय में सार्वजनिक नीति उपाय बना रहे हैं। मंत्रियों के समूह ने जहां तक मुमकिन हो प्रशासनिक विषयों में अधिकार को खत्म करने की सिफारिश की है। यह कार्य प्रगति पर है। हमने सूचना का अधिकारी कानून के साथ शुरूआत की थी । हम लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक के साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई समाप्त नहीं होने देंगे।
हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ संपूर्ण रूप से लड़ाई करनी चाहिए। यदि हम अपने प्रयास में वास्तव में ईमानदार हैं तो हमारे क़ानूनों का असर सर्वव्यापी होना चाहिए। राज्य विधानसभाओं को प्रस्तावित मॉडल कानून अपनाने और इसे लागू करने में देरी करने संबंधी दलीलों को स्वीकार नहीं किया जा सकता। भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार है चाहे वह केंद्र में हो या राज्यों में। इसका कोई वैधानिक रंग नहीं है। मैं सभी पार्टियों के नेताओं से आह्वान करता हूं कि वह राजनीतिक पक्षपात से ऊपर उठें और लोगों को बताएं कि यह सदन भ्रष्टाचार के प्रयासों के विरूद्ध संघर्ष करने के प्रति वचनबद्ध है। हम सभी इस प्रस्ताव के समर्थन में है जिसमें सदन की भावना भी झलकती है कि हम लोकपाल के साथ राज्यों में लोकायुक्त बनाने के प्रति वचनबद्ध हैं। यदि हम संविधान के अनुच्छेदों का हवाला देकर लोकायुक्त की व्यवस्था प्रदान नहीं करते तो यह सदन के द्वारा राष्ट्र को दिए गए वादे को तोड़ना होगा। ऐसी क्रिया विधि से संसद की भावना का ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए। मैं संसद में अपने सहयोगियों से आह्वान करता हूं कि वह इस विधेयक को पास करने के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठें।
केंद्र सरकार नागरिकों को सीधे तौर पर सीमित सार्वजनिक सेवाएं मुहैया कराने के लिए जिम्मेदार है। मुख्य समस्या राज्य सरकारों के क्षेत्रों में है जहां आम आदमी हर रोज़ किसी न किसी तरीके से भ्रष्टाचार का सामना करता है। इसी वजह से ग्रुप सी और ग्रप डी के कर्मचारियों को राज्यों में लोकायुक्त के दायरे में लाया गया है। स्थानीय के साथ-साथ राज्य प्राधिकरण आम आदमी को अनिवार्य सेवाएं प्रदान करने के लिए अधिकृत है। यहां पर भ्रष्टाचार के शाप से निपटने की ज़रूरत है। पानी, बिजली, नगरपालिका सेवाएं, परिवहन, राशन की दुकानें ऐसे कुछ उदाहरण हैं जहां राज्य और स्थानीय प्राधिकरणों द्वारा ज़रूरी सेवाएं प्रदान की जाती हैं और जिससे आम आदमी की जिंदगी प्रभावित होती है। राज्यों में लोकायुक्त की स्थापना से इससे होने वाली निराशा को कम किया जा सकेगा।
केन्द्र सरकार की प्रमुख फ्लैगशिप योजनाओं का कार्यान्वयन राज्य सरकार के अधीन कार्यरत कार्यकारी अधिकारियों द्वारा ही किया जाता है। लोकसभा तथा अन्य सदन में सदस्य प्रतिदिन हमारी केन्द्रीय योजनाओं को राज्यों द्वारा लागू किए जाने पर मोह भंग जाहिर करते हैं। हमें इसका उपचार करना होगा। जब तक लोकायुक्तों को स्थापित नहीं किया जाता तब तक भ्रष्टाचार का कैंसर फैलता रहेगा। हमें इस मुद्दे को अब और अधिक लंबित नहीं करना चाहिए। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में संघवाद बाधा नहीं बन सकता।
हम मानते हैं कि सीबीआई को सरकारी निर्देशों के बगैर बिना किसी व्यवधान के कार्य करना चाहिए। लेकिन कोई भी संस्थान और कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसे जवाबदेही से मुक्त नहीं होना चाहिए। सभी सांस्थानिक संरचनाओं को हमारे संविधान के साथ सुसंगत होना चाहिए। आज हमें यह मानने को कहा जा रहा है कि जिस सरकार का जनता के द्वारा प्रत्यक्ष रुप से चुनाव किया गया है और जो उसके प्रति जवाबदेह है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता किंतु एक संस्था जिसे जनता से प्रत्यक्ष तौर पर औचित्य प्राप्त नहीं हुआ है अथवा उसके प्रति जवाबदेह नहीं है उस पर सम्मान और विश्वास के साथ उसकी अपरिमित शक्ति पर भरोसा किया जा सकता है। हमारे संवैधानिक संरचना के साथ किसी अन्य भिन्न संस्था का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए और बिना किसी जवाबदेही के मुश्किल कार्यकारी उत्तरदायित्व का प्रभार नहीं दिया जाना चाहिए। मूलभूत विश्लेषण में, संवैधानिक संरचना के अंतर्गत सभी संस्थान संसद और केवल संसद के प्रति जवाबदेह है। इस कानून को लागू करने में हमारी उत्सुकता में हमें लड़खड़ाना नहीं चाहिए। मेरा यह मानना है कि सीबीआई को लोकपाल से स्वतंत्र होकर कार्य करना चाहिए। मेरा यह भी मानना है कि सीबीआई को सरकार से भी स्वतंत्र होकर कार्य करना चाहिए। लेकिन स्वतंत्रता से अभिप्राय जवाबदेही की अनुपस्थिति का नहीं है। इसलिए हमने सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति के लिए ऐसी प्रक्रिया का प्रस्ताव रखा है जिसमें प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश अथवा उनके द्वारा मनोनीत व्यक्ति और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता शामिल हो। किसी को भी इस प्रक्रिया की ईमानदारी के प्रति संदेह नहीं होना चाहिए। जहां तक लोकपाल के तहत सीबीआई के कार्यशील होने का मुद्दा है, हमारी सरकार मानती है कि इससे संसद के बाहर एक ऐसी कार्यकारी संरचना का निर्माण होगा जो किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। यह संवैधानिक सिद्धांतों के लिए अभिशाप है। मेरा मानना है कि जो विधेयक अभी सदन के सम्मुख है उसमें कार्यात्मक स्वायत्तता और सीबीआई की जवाबदेही का न्यायसंगत मिश्रण है। मुझे विश्वास है कि इस सदन का विवेक विधेयक में प्रतिबिंबित हमारी सरकार के प्रस्ताव का समर्थन देने के लिए आगे आएगा।
इस चर्चा के दौरान नौकरशाही पर काफी आरोप लगे। हालांकि मैं इससे सहमत हूं कि सार्वजनिक अधिकारियों को निष्कपट होना चाहिए और अपराधियों के साथ शीघ्रता और निर्णयात्मक रुप से निपटा जाना चाहिए, मुझे उन बहुत से जन सेवकों के प्रति गहरी सराहना प्रकट करनी होगी जो अविश्वास के माहौल में अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ करते हैं। मुझे नहीं लगता कि सभी जन प्रतिनिधियों को एक ही नज़रिए से देखा जाना चाहिए जैसे कि हर राजनेता को हम भ्रष्ट नहीं मान सकते। बगैर एक कार्यशील, प्रभावी प्रशासन प्रणाली, कोई भी सरकार अपनी जनता के लिए कार्य नहीं कर सकती। हमें एक ऐसी प्रणाली को स्थान नहीं देना चाहिए जिसमें जन सेवक हिचकिचाहट के कारण डर कर उस बात को दर्ज न करा सके जिसे वह सोचते हैं और इस प्रक्रिया में कुशल प्रशासन की आत्मा को खतरा उत्पन्न होगा। जन सेवकों के आचरण की परख करते हुए हमें स्पष्ट गैर-कानूनी आचरणों तथा अनजाने में और गलती से हुई भूलों में अंतर करने की ज़रुरत को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। कई बार हमारे जनसेवकों को अनिश्चय की स्थितियों में निर्णय लेना पड़ता है। एक सहज अनिश्चयात्मक भविष्य में यह संभव है कि कोई प्रक्रिया जो शुरु में प्रत्याशित रुप से न्यायसंगत लगे वही बाद में ठीक न लगे। पुरस्कारों और दंड की हमारी प्रणाली में हमें इस तथ्य को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए।
शासन की सभी प्रणालियां विश्वास पर आधारित होनी चाहिए। यह लोगों का भरोसा है जिसे सरकार में हम प्रतिबिंबित और संरक्षित करते हैं। सभी प्राधिकारियों पर अविश्वास लोकतंत्र की नींव को खतरे में डालती है। विशाल आकार और विविधता के हमारे राज-शासन को एक साथ तभी बनाए रखा जा सकता है जब हम उन संस्थानों में अपना भरोसा और विश्वास बनाए रखेंगे जिन्हें हमने वर्षों में बेहद सावधानी के साथ निर्मित किया है। मतदाताओं की शक्ति वह मूलभूत अधिकार है जो हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों में जवाबदेही लाती है। लोकतंत्र को खतरे में डालकर हम केवल अव्यवस्था की उन ताकतों के लिए राह प्रशस्त करेंगे जहां भावनाओं को दलीलों के स्थान पर जगह मिलेगी।
महोदया
हम वर्तमान की कमियों की प्रतिक्रियास्वरुप भविष्य के लिए कुछ निर्मित कर रहे हैं। जब हम भविष्य की ओर देखते हैं तो हमें इसमें छिपी हुई दिक्कतों पर भी ध्यान देना चाहिए। भ्रष्टाचार को समाप्त करने के नाम पर हमें ऐसा कुछ भी निर्मित नहीं करना चाहिए जिससे उसका नाश हो जाए जिसे हमने संजोया है।
जनता के प्रतिनिधि होने के नाते हमें उस विश्वास को पुनः निर्मित करने की एक अन्य यात्रा की शुरुआत करने के लिए अभी तत्पर होना होगा, जो एक मजबूत और गुंजायमान भारत के लिए आवश्यक है।